भगवान बुद्ध : सम्यक धम्म के प्रणेता
भगवान
बुद्ध का कुल:
ईसा पूर्व छठी शताब्दी के दौरान भारत एक प्रभुता
संपन्न देश नहीं था .यह अनेक छोटे-छोटे राज्यों में बंटा था.इनमें से कुछ राज्यों के
एक-एक राजा थे जिन्हें जनपद कहा जाता था तथा कुछ राज्यों में सिर्फ एक राजा का अधिपत्य नहीं था और
इन्हें संघ या गण कहते थे.कपिलवस्तु एक ऐसा ही शाक्य शासित गंणतंत्र था जिसमें कई
शासक परिवार थे और एक के बाद एक क्रमशः
शासन करते थे.शासक परिवार का जो मुखिया होता था वह राजा कहलाता था.जिस समय
सिद्धार्थ गौतम का जन्म हुआ शुद्धोधन के राजा बनने कि बारी थी.यह शाक्य - राज्य
भारत के उत्तर – पूर्वी कोने में स्थित था तथा एक स्वतंत्र राज्य था.
भगवान बुद्ध के पूर्वज:
शाक्यों की राजधानी का नाम कपिलवस्तु था जिसका
नाम शायद महान बुद्धिवादी मुनि कपिल के नाम पड़ा हो.कपिलवस्तु में जयसेन नाम के एक
शाक्य रहते थे. सिनाहनु उनके पुत्र थे.सिनाहनु का विवाह कच्चना से हुआ था.उनके
पांच पुत्र – शुद्धोधन,धौतोदन,शाक्लोदन,शुक्लोदन,अमितोदन
तथा दो पुत्रिंयाँ-अमिता तथा पमिता थी.परिवार का गोत्र आदित्य था.
शुद्धोदन का विवाह महामाया से हुआ था जिनके पिता का नाम अंजन था और माँ का नाम
सुलक्षणा था.अंजन कोलिय थे तथा देवदह नाम के गांव में रहते थे.शुद्धोदन एक महान
योद्धा थे और उनके सैन्य पराक्रम के कारण उन्हें एक और विवाह करने की अनुमति मिल
गई.उन्होंने महाप्रजापति को चुना जो की महामाया की ही बड़ी वहन थी.
भगवान बुद्ध का जन्म:
सिद्धार्थ गौतम के जन्म की कथा इस प्रकार
है.शाक्यों के राज्य में प्रथानुसार प्रति वर्ष अषाढ़ के माह में सम्पूर्ण राज्य
में एक मध्य-ग्रीष्मकालीन महोत्सव मनाया जाता था जिसमें शासक वर्ग के लोग भी
सम्मिलित होते थे.एक बार महामाया ने इस उत्सव को पूरी भव्यता एवं उत्साह के साथ मनाने
का निश्चय किया.सातवें दिन उनहोंने प्रातःकाल जल्दी उठकर सुगन्धित जल से स्नान करके
बहुत सारा दान किया एवं सभी मूल्यवान आभूषणों से अपने को सुशोभित किया,मनपसंद भोजन
किया,व्रत का संकल्प किया,और तदन्तर रात्रि में पूरी भव्यता के साथ शयनागार में
सोने के लिए चली गयी.उस रात शुद्धोदन और
महामाया का संपर्क हुआ और महामाया ने गर्भ धारण किया. निद्रा में महामाया ने एक
स्वप्न देखा:वह शैया पर सो रही थी कि चतुर्दिक महाराजिक देवता उनकी शैया को उठा कर
ले गए और ले जाकर हिमालय क्षेत्र में एक विशाल शाल वृक्ष के नीचे रख दिया.वे देवता
(श्रेष्ठ पुरुष )पास ही खड़े थे.तब उन देवताओं की देवियाँ वहाँ आयीं और उन्हें
उठाकर मानसरोवर ले गई , उन्हें स्नान कराया,स्वच्छ वस्त्र पहनाये,सुगंधियों का लेप
किया और फूलों से इस तरह सजाया-सवांरा कि वे दिव्य पुरुष के सम्मिलन योग्य बन
जाएँ.
तब सुमेध नाम का एक बोधिसत्व उनके सामने प्रकट
हुआ और बोला,”मैंने अपना अंतिम जन्म पृथ्वी पर धारण करने का निश्चय किया है,क्या
आप मेरी माता बनाना स्वीकार करेंगी?”महामाया ने उत्तर दिया,”हाँ,बड़ी प्रसन्नता
से.”उसी समय महामाया की नींद खुल गई.
दूसरे दिन महामाया ने शुद्धोदन को अपने स्वप्न के
बारे में बताया.शुद्धोदन स्वप्न की व्यख्या नहीं कर सके तो उनहोंने शकुन-विद्या
में प्रसिद्ध आठ ब्राह्मणों को बुलवाया.ब्राह्मणों का हर तरह से आव-भगत एवं
स्वादिष्ट भोजन कराने के उपरांत शुद्धोदन ने महामाया के स्वप्न के बारे में उन्हें
बताया और इसका अर्थ पूछा.ब्राह्मणों ने उत्तर दिया,”महाराज, चिंतित न हों,आपके
यहाँ एक पुत्र होगा. यदि वह गृहस्थी में रहेगा तो चक्रवर्ती राजा होगा;और यदि गृह
त्याग कर सन्यासी हो गया तो वह संसार की भ्रान्ति तथा अंधकार नाश करने वाला बुद्ध
होगा.”
दस माह तक गर्भ में शिशु को धारण करने के उपरांत
जब प्रसव का समय आया तो उनहोंने अपने मायके जाकर शिशु को जन्म देने की इच्छा जाहिर
की.उनहोंने अपने पति से कहा,”मैं अपने पिता के घर देवदह जाना चाहती हूँ.
शुद्धोदन ने उनकी इच्छा पूरी करते हुए अनेक
सेवक-सेविकाओं के साथ कहारों द्वारा स्वर्ण पालकी में महामाया को देवदह के लिए रवाना कर दिया.
देवदह के मार्ग में लुम्बिनी बन पड़ता था जो उस
समय शाल बृक्षों तथा अन्य पुष्पित एवं अपुश्पित बृक्षों से भरा पड़ा था.जड़ से छोर
तक पेड़ फल फूलों से लदे पड़े थे,अनेकानेक प्रकार के पक्षी एवं मधुमक्खियाँ मधुर तान
छेड़ रहे थे.यह मनोरम दृश्य देखकर महामाया के मन में, कुछ देर वहाँ रुककर, मनोविनोद
करने की इच्छा उत्पन्न हुई.उन्होंने पालकी उठाने वालों को पालकी शाल उद्यान में ले
चलने को कहा.
महामाया पालकी से उतरकर एक शाल बृक्ष के नीचे
पहुंचीं.हवा मंद-मंद वह रही थी जिससे शाल की डालियाँ ऊपर-नीचे हो रही थी.महामाया
का मन हुआ कि वह एक शाखा को पकड़ लें.संयोगवश एक शाखा इतनी नीचे झुक गई कि वह उसे
पकड़ सके.महामाया पंजों के बल खड़ी हो गईं और उनहोंने वह शाखा पकड़ ली.इतने में हवा
के झोंके से वह डाल ऊपर की ओर उठ गई और उसके झटके से महामाया को प्रसव-वेदना होने
लगी.उस शाल बृक्ष की शाखा पकड़े हुए खड़े-खड़े ही महामाया ने एक पुत्र को जन्म
दिया.इस तरह ईसा पूर्व ५६३ वैसाख पूर्णिमा के दिन बालक सिद्धार्थ गौतम का जन्म
हुआ.शुद्धोदन एवं महामाया का विवाह हुए बहुत समय बीत गया था , पुत्र प्राप्ति पर उनके
परिवार तथा शाक्यों द्वारा भी बहुत धूम-धाम तथा समारोह पूर्वक पुत्र का जन्मोत्सव
मनाया गया.उस समय शुद्धोदन राजा की उपाधि से गौरवान्वित थे अतः बालक भी राजकुमार
ही कहलाया.
नोट: उपर्युक्त सामग्री बोधिसत्व बाबासाहेब डा.
भीम राव अम्बेडकर द्वारा लिखित “भगवान बुद्ध और उनका धम्म” पुस्तक के हिंदी
संस्करण से साभार जुटायी गई है.